गम तो काफी दिये इस हसी नायाब जिंदगी ने   
हा दर्द मे भी खुशियाँ मे ढूँढता रहा हु      

सजा हुआ फरेबी झूठ सब को अपने लगने लगा 
मैं सच का साथ देके तन्हा होता रहा हू   

लोंगो ने तो गैर करने का बहाना ही देखा है 
पर सबको मैं अपना बेहद करीबी समझता रहा हू

सबको बाँटता रहा हसी गली, टोली, कुच़े, शहर, गाँव में
खुद अंदर ही अंदर अपने मैं घुटता रहा हू 

बेईमानों से ऐसा पाला पडा बेईमान शब्दभी बेईमान लगा
मैं "शहद " अपनी वफा को शिद्दतसे निभाता रहा हू

बड़ा शोरगुल है भीड़ यहा रहती है बड़ी मस्ती में
एक मे मस्ती छोड़ अपना वजूद खोता रहा हू

बड़ा जालिम समझा और बहुतोंने नफरत भी की है मुझसे 
पर नफरत करने वालो से मोहब्बत करता रहा हू